वांछित मन्त्र चुनें

क॒न्या॑इव वह॒तुमेत॒वा उ॑ अ॒ञ्ज्य॑ञ्जा॒ना अ॒भि चा॑कशीमि। यत्र॒ सोमः॑ सू॒यते॒ यत्र॑ य॒ज्ञो घृ॒तस्य॒ धारा॑ अ॒भि तत्प॑वन्ते ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kanyā iva vahatum etavā u añjy añjānā abhi cākaśīmi | yatra somaḥ sūyate yatra yajño ghṛtasya dhārā abhi tat pavante ||

पद पाठ

क॒न्याः॑ऽइव। व॒ह॒तुम्। एत॒वै। ऊ॒म् इति॑। अ॒ञ्जि। अ॒ञ्जा॒नाः। अ॒भि। चा॒क॒शी॒मि॒। यत्र॑। सोमः॑। सू॒यते॑। यत्र॑। य॒ज्ञः। घृ॒तस्य॑। धाराः॑। अ॒भि। तत्। प॒व॒न्ते॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:58» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:11» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (वहतुम्) धारण करनेवाले को (एतवै) प्राप्त होने की (कन्याइव) जैसे कुमारी वैसे (अञ्जि) व्यक्त उत्तम लक्षण को (अञ्जानाः) प्रकट करती हुई (घृतस्य) प्रकाशसम्बन्धिनी (धाराः) वाणियाँ (उ) और (यत्र) जहाँ (सोमः) ऐश्वर्य्य वा ओषधियों का समूह और (यत्र) जहाँ (यज्ञः) करने योग्य व्यवहार (सूयते) उत्पन्न होता है (तत्) उस कर्म्म को (अभि, पवन्ते) पवित्र कराती हैं, उनको मैं (अभि, चाकशीमि) प्रकाशित करता हूँ ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे स्वयंवर करनेवाली कन्या अपने सदृश पति को प्राप्त होने की दिन-रात्रि परीक्षा करती है और ऐसे ही पुरुष परीक्षा करता है, वैसे अध्यापक और उपदेशक परीक्षक होवें और जिस कर्म्म से ऐश्वर्य्य और क्रिया की शुद्धि होवे, वही वचन कहने योग्य है ॥९॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

या वहतुमेतवै कन्याइवाञ्ज्यञ्जाना घृतस्य धारा उ यत्र सोमो यत्र यज्ञः सूयते तत्कर्माभि पवन्ते ता अहमभि चाकशीमि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कन्याइव) यथा कुमार्य्यः (वहतुम्) वोढारम् (एतवै) प्राप्तुम् (उ) (अञ्जि) व्यक्तं सुलक्षणम् (अञ्जानाः) प्रकटयन्त्यः (अभि) (चाकशीमि) प्रकाशयामि (यत्र) (सोमः) ऐश्वर्यमोषधिगणो वा (सूयते) निष्पद्यते (यत्र) (यज्ञः) अनुष्ठातुमर्हो व्यवहारः (घृतस्य) प्रकाशस्य (धाराः) वाचः (अभि) (तत्) कर्म (पवन्ते) शोधयन्ति ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा स्वयंवरा कन्या स्वसदृशं पतिं प्राप्तुमहर्निशं परीक्षयति पुरुषश्च तथाऽध्यापकोपदेशकौ परीक्षकौ स्याताम्, येन कर्म्मणैश्वर्य्यं क्रिया शुद्धिश्च जायते तदेव वचनं भाषितुं योग्यमस्ति ॥९॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी स्वयंवर करणारी कन्या आपल्यासारख्याच पतीला प्राप्त करण्यासाठी अहर्निश परीक्षा करत असते. तसेच पुरुषही करतो, तसे अध्यापक व उपदेशक असावेत. ज्या कर्माने ऐश्वर्य प्राप्त व्हावे व क्रियाशुद्धी व्हावी तेच वचन सांगण्यायोग्य असते. ॥ ९ ॥